vijayanagar ki samajik avastha : विजयनगर की सामाजिक अवस्था
vijayanagar ki samajik avastha
1. विजयनगर की सामाजिक अवस्था–
उस समय की सामाजिक व्यवस्था का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है vijayanagar ki samajik avastha : विजयनगर की सामाजिक अवस्था –
(1) राजा और सामंतों– सरदारों का वैभव –पेइज ने का है–”सचमुच में (वहां का वैभव देखकर) इस प्रकार विभोर हो गया की लगा मुझे कोई भ्रामक काल्पनिक दृश्य दिखलायि पढ़ रहा है और मैं सपना देख रहा हूं!”
(2) रीति –रिवाज व द्वंद युद्ध–न्यूज़ ने तत्कालीन विचित्र रीति-रिवाजों पर काफी प्रकाश डाला है जिसमें एक द्वंद– युद्ध है! विवादों के निर्णय के लिए “द्वंद युद्ध‘ प्रथा खूब प्रचलित थी। सती प्रथा , बाल विवाह बहु– विवाह दहेज प्रथा आज भी प्रचलित थी!
(3) स्त्रियों की अवस्था–स्त्रियों की अवस्था बड़ी प्रगतिशील थी! न्यून्यूज ने स्त्रियों में पहलवानों ज्योतिषियों आज तक के होने की चर्चा की है! स्त्री लेखीकाए आय–व्यय और राजकीय कार्यकलाप का विवरण रखने के लिए नियुक्त की जाती थी! स्त्रियां साम्राज्य के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन में भाग लेती थी! प्राय एक ही स्त्री से विवाह किया जाता था, परंतु धनी लोग एवं राज परिवार के लोग अनेक स्त्रियों से विवाह करते थे। मंदिरों में देव पूजा के लिए रहने वाली स्त्रियों को देवदासी कहां जाता था।
(4) वेश्यावृत्ति–जहां स्त्रियां मैं प्रगतिशीलता विशेष थी वहां नगर की अतिशय समृद्धि के परिणाम स्वरूप विलासिता को भी प्रश्रय मिला था और वेश्यावृत्ति का प्रचलन था। नगर में अनेक वेश्यालय थे। अब्दुर रज्जाक ने वेश्याओं और कुलयओ का विस्तृत वर्णन किया है और बतलाया है की वेश्यावृत्ति पर कर भी लिया जाता था।
(5) भोजन–ब्राह्मण मास का सेवन नहीं करते थे परंतु अन्य जातियों के लोग मांसाहारी थे! गाय और बैल को छोड़कर अन्य पशुओं का मांस खाया जाता था नगर में मांस बेचने की दुकानें की थी!
(6) वेशभूषा–सामान्य वर्ग के पुरुष धोती और सफेद सूती या रेशमी कमीज पहनते थे! वे टोपी तथा पगड़ी भी पहनते थे! राज परिवार के लोग किमती एवं जमीदार वस्त्र पहनते थे! सामान्य वर्ग की स्त्रियां साड़ी और चोली धारण करती थी! स्त्री और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे!
(7) समाज–उस समय का समाज सुसंगटीत था! चारों वर्णों में ब्राह्मण सर्व प्रमुख थे! सामाजिक तथा धार्मिक जीवन में ही नहीं, बल्कि राजनीतिक और प्रशासनिक मामलों में भी उनका विशेष महत्व था! जातीय जटिलता नहीं थी! छुआछूत और ऊंच-नीच की भावना विदमान नहीं थी!
(8) यज्ञ और बलिदान–यज्ञ मैं पशुओं का बलिदान भी खूब प्रचलित था पेज ने लिखा है की महान व्मी के अवसर पर 250 भैंस और 4500 भेड़े कटती थी यह विवरण अतिरंजित मालूम होता है I
(9) मनोरंजन के साधन–मनुष्य के मनोरंजन ( entertainment ) के निम्न साधन प्रचलित थे ! पशु– युद्ध द्वंद –युद्ध, नाटक संगीत नृत्य आदि मनोरंजन के प्रमुख साधन थे !
(10) दास प्रथा–विजयनगर साम्राज्य में दास प्रथा भी! प्रचलित थी दास राशियों का क्रय– विक्रय प्रचलित था दास दास यों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाता था!
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विजय नगर की आर्थिक अवस्था–
(1) राज्य की समृद्धि–विजयनगर राज्य की गिनती तत्कालीन विश्व के अत्यंत धनी और संपन्न राज्यों में की जाती थी! ईरानी राजदूत अब्दुल रज्जाक ने विजयनगर राज्य की समृद्धि का वर्णन करते हुए लिखा है कि राजा के कोष ग्रह में अनेक गड्ढे खुदे हुए हैं जिसमें पिघला हुआ सोना भर दिया गया है जिसकी ठोस सिलाई बन गई हैं राज्य की सभी उच्च और निम्न जातियों के निवासी कानो, कंटो ,बाजू को कलाइयों तथा उंगलियों में जवाहरात तथा सोने के आभूषण पहनते हैं!” पुर्तगाली यात्री प्रइज ने लिखा है कि” राजा के पास भारी कोष अनेकार्थी तथा सैनिक हैं इस नगर में प्रत्येक राष्ट्र और जाति के लोग मिलेंगे क्योंकि यहां व्यापार अधिक होता है। और अरे आज बहुमूल्य पत्थर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है संसार में यह सबसे अधिक संपन्न नगर है। और यहां चावल गेहूं और अनाज के भंडार भरे हैं।
(2) कृषि और पशुपालन–कृषि और पशुपालन के व्यवसाय भी उन्नत अवस्था में थे! सिंचाई की उत्तम व्यवस्था के कारण कृषि का उत्पादन बहुत बड़ गया था! गेहूं, चावल, जो, मटर, दाल, चना आज का खूब उत्पादन होता था!
(3) उद्योग धंधे–विजयनगर राज्य में– उद्योग धंधे भी उन्नत अवस्था में थे वस्त्र उद्योग धातु उद्योग, तथा इत्र उद्योग महत्वपूर्ण उद्योग थे! उद्योग तथा व्यवस्थाओं के नियंत्रण के लिए अनेक संघ थे!
(4) व्यापार–व्यापार भी उन्नत व्यवस्था में था! आंतरिक तथा समुद्रिक दोनों प्रकार का व्यापार उन्नत अवस्था में था! विजयनगर राज्य का व्यापार मलाया, बर्मा, चीन, अरब, ईरान, दक्षिणी अफ्रीका, अभीसीरिया, पुर्तगाल आज देशों के साथ होता था! यहां से वस्त्र, चावल, लोहा, सोरा, शक्कर मसाले आज विदेशों को भेजे जाते थे तथा घोड़े, हाथी, तामा, कोयला, पारा, रेशम मलमल बाहर से मंगवाई जाती थी! समुद्रीक व्यापार जहाज द्वारा होता था!
डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव का कथन है की “विजयनगर साम्राज्य में सोने तथा तांबे के सिक्के चलते थे कुछ चांदी के सिक्कों का भी चलन था उच्च तथा मध्यम श्रेणी के लोग धनी थे! तथा उनके रहन-सहन का स्तर भी ऊंचा था! साधारण लोगों के लिए भी जीवन की आवश्यकता वस्तुओं का अभाव नहीं था, किंतु उच्च लोगों की तुलना में वे दरिद्र थे! साम्राज्य की आर्थिक अवस्था में एक दोस्त था, साधारण जनता को राज्य– करो का मुख्य भोज सहनी पड़ती था, अन्यथा लोग सुखी थे। बहमनी राज्य की जनता से दे कहीं समृद्ध थे।
विजयनगर की धार्मिक अवस्था– ( Religious Condition of Vijaynagar )
वास्तव में विजयनगर राज्य की स्थापना हिंदू धर्म के रक्षक के रूप में हुई थी! और यह नीति अंत तक बनी रही विजय नगर के सम्राट स्वयं को हिंदुओं का धार्मिक प्रतिनिधि और त्राता समझते थे, और तदनुकूल ही उनकी धार्मिक नीति थी वे वैष्णो धर्म के अनुयाई थे और बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे, किंतु इस धार्मिकता के कारण उनमें कट्टरता कदापि नहीं आई थी या।
वह सहीशनू और ऊद्दार थे! दक्षिण के मुसलमान राज्यों से उनकी परंपरागत शत्रुता थी और युद्ध में विजय पाने के बाद उनके साथ वह बहुत ही कठोर और क्रूर व्यवहार करते थे, क्योंकि वैसा ही व्यवहार वे राज्य में अपनी विजय के अवसर पर हिंदू जनता के साथ करते थे, किंतु अपने राज्य की मुसलमान प्रजा के साथ उनका व्यवहार बहुत ही सराहनीय था! भरोसा का कथन है कि राज्य में इतनी स्वतंत्रता है की “प्रत्येक मनुष्य कहीं भी आ जा सकता है, और अपने धर्म के अनुकूल आवरण कर सकता है ना तो कोई उसे सताएगा और ना यही पूछेगा की वह ईसाई , मुसलमान या हिंदू है विजयनगर के राजाओं ने अपने राज्य में मस्जिदों तथा गिरजा घरों के निर्माण की स्वीकृति दी तथा आर्थिक अनुदान भी दिया।
कला– ( Art )
विजय नगर साम्राज्य में कला के क्षेत्र में भी काफी उन्नति हुई विजयनगर के शासकों ने अनेक भव्य मीनारों विशाल ताजमहल, ओ जी लो और नेहरू का निर्माण करवाया। कृष्णदेव राय ने “हजारा मंदिर” का निर्माण करवाया जो विजयनगर की स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट नमूना है। विट्ठल स्वामी का मंदिर भी उस युग की स्थापत्य कला का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। कृष्णदेव राय ने राजधानी विजयनगर मैं अनेक मंडप तथा गोपुरम भी बनवाए। विजयनगर राज्य के शासकों ने चित्र कला, संगीत कला तथा नाट्य कला, को भी प्रोत्साहन दिया।
5. साहित्य ( Literature )
विजयनगर राज्य में साहित्य के क्षेत्र में भी पर्याप्त उन्नति हुई । विजय नगर के सांसद विद्या –प्रेमी थे उन्होंने विद्वानों, कवियों तथा साहित्यकारों का प्रोत्साहन एवं संरक्षण प्रदान किया । प्रणामस्वरूप संस्कृत, तेलुगू, तमिल तथा कन्नड़ भाषाओं की खूब उन्नति हुई तथा इन भाषाओं में उच्च कोटि के ग्रंथ लिखे गए । सायण तथा माधव विद्यारण्य संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे तथा वेदों के प्रख्यात भाष्यकार थे । कृष्णदेव राय स्वयं एक उच्च कोटि का विद्वान तथा विद्वानों का संरक्षक था । अनेक कवि, विद्वान तथा दार्शनिक उस के दरबार में रहा करते थे । कृष्णदेव राय ने ‘ अमुक्त माल्यद ’ नामक ग्रंथ की रचना की । तेलुगु साहित्य का महान कवि अलसनी कृष्णदेव राय के समय में हुआ था । उसे राष्ट्रकवि का पद प्राप्त था । कृष्णदेव राय के पश्चात भी विजयनगर राज्य में संगीत, व्याकरण, दर्शन, नाटक आदि पर अनेक ग्रंथ लिखे गए ।
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