shahjahan ka jeevan parichay : शाहजहाँ का जीवन परिचय

shahjahan ka jeevan parichay : शाहजहाँ का जीवन परिचय 

Shah Jahan’s life introduction

शाहजहां का जन्म 16 जनवरी 1592 को मोटा राजा उदय सिंह की पुत्री जगत गोसाई के गर्व से लाहौर में हुआ था शाहजहां ( shahjahan ) के बचपन का नाम खुर्रम था शाहजहां के सिंहासन पर बैठने से पूर्व आसिफ खा ने डाबर बक्स को कुछ समय के लिए दिल्ली का सिंहासन दिया गया क्योंकि उस समय शाहजहां दिल्ली में मौजूद नहीं था इसलिए उसके ससुर आसिफ खान ने एक डमी प्रतिरूप शासक के रूप में दावर बक्स को शासक बनाया 24 फरवरी 1628 ईसवी को शहजादा दावल बॉक्स को हटाकर मुगल सिंहासन पर बैठा.

शाहजहां का विवाह 1612 ईसवी में आसफ खां की पुत्री अर्जुमंद बानू से हुआ वह इतिहास में मुमताज महल के नाम से प्रसिद्ध हुई मुमताज को मलिक ए जमानी की उपाधि दी 1631 ईस्वी बुरहानपुर मैं मुमताज की मृत्यु प्रसव पीड़ा से हुई इसने 14 संतानों को जन्म दिया जिसमें से 4 पुत्र और 3 पुत्रियां जीवित रहे मुमताज की याद में शाहजहां ने ताजमहल (tajmahal) का निर्माण यमुना नदी के किनारे आगरा में करवाया ताजमहल की मुख्य वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी थी ताजमहल के निर्माण मैं भारत और पर्शिया देसी कि विशेषज्ञों का सहयोग है अर्जुमंद; बेगम की संतान

1 . दारा शिकोह
2 . जहांआरा
3 . औरंगजेब
4 . रोशनआरा
5 . शुजा
6 . गोहनआरा
7 . मुराद

ध्यान रहे-

शाहजहां के अंतिम समय में इन की सबसे बड़ी पुत्री जहाआरा ने मुसम्मन बुर्ज मैं रखती हुए उनकी सेवा की थी
सावधानी सर्वप्रथम 1633 ईस्वी में अहमदनगर राज्य को जीत कर अपने समाज में मिलाया शाहजहां ने 1639 ईस्वी में कंधार का किला पुणे हासिल किया परंतु 1650 ईस्वी में यह किला अंतिम रूप से मुगलो के हाथों से निकल गया शाहजहानी तख्ते ताऊस नामक रतनजड़ित सिंहासन बनवाया इसके शिल्पकार बादल कांति शाहजहां के समय में सिख गुरु हरगोविंद सिंह के साथ एक बाज को लेकर इनका झगड़ा हुआ
शाहजहां ने 1636 ईस्वी में सिजदा वाह पेबॉस प्रथा को समाप्त किया तथा इसके स्थान पर जहार ए तस्लीम परंपरा को शुरू किया इन्होंने इलाही संवत के स्थान पर हिजरी संवत की स्थापना की और अपने सामंतो द्वारा अपनी पगड़ी में लगाई जाने वाली बादशाह की तस्वीर को पढवा दिया

1657 ईस्वी में शाहजहां के बीमार होते हुए उनके पुत्रों में उत्तराधिकारी का युद्ध प्रारंभ हुआ 1666 ईसवी शाहजहां की मृत्यु हुई इसे ताज महल में मुमताज की कब्र के पास दफनाया गया शाहजहां का शासनकाल मुगल इतिहास का स्वर्ण युग व स्थापत्य कला का स्वर्ण युग कहा जाता है शाहजहां के शासन काल का वर्णन फ्रेंच यात्री बर्नियर इटालियन यात्री मनुची ने किया शाहजहां के राज्य कवि जगन्नाथ पंडित थे जिन्हों ने गंगाधर और गंगा लहरी की रचना की

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ध्यान रहे-

मुगल साम्राज्य की राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित की थी
सांझा की राजपूत नीति.
संजय एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था शाहजहां के माता तथा दादी दोनों ही राजपूत थी परंतु रक्त संबंधों का शाहजहां पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा अपने पिता वह पिता की भांति शाहजहां में किसी राजपूत राजकुमारी से  विवाह नहीं किया अपने हरम में राजपूत राजकुमारियां के प्रभाव से मुक्त रहा शाहजहां से पूर्व जब हिंदी राजाओं को उपाधियां तथा मनसब दिए जाते थे तो सम्राट उनकी मस्तक पर टीका लगाया करता था परंतु शाहजहां ले इस परंपरा को बंद कर दिया परंतु उसके उदारवादी पुत्र . दारासिको के प्रभाव के कारण हिंदुओं के प्रति उदारवादी रुक अख्तियार किया हालांकि वे अपने संपूर्ण जीवन में धार्मिक रूप कट्टर बना रहा लेकिन फिर भी उसे राजपूत शासकों का समर्थन मिलता रहा .

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धन्यबाद 

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