savinay avagya andolan : सविनय अवज्ञा आन्दोलन व दांडी यात्रा की पूर्ण जानकारी ?

savinay avagya andolan : सविनय अवज्ञा आन्दोलन व दांडी यात्रा की पूर्ण जानकारी ?

savinay avagya andolan

जनवरी, 1930 में महात्मा गांधी ने 11 सूत्री प्रस्ताव रखा, जिस पर सरकार से कोई सकारात्मक जवाब ना मिलने के कारण महात्मा गांधी ने ‘सविनय अवज्ञ आंदोलन’ शुरू करने की धमकी दी, जिसका प्रमुख उद्देश्य ‘नमक कानून’ को तोड़ना था । जो आम जनता की एक जरूरत थी । वायसराय का सकारात्मक जवाब ना मिलने पर महात्मा गांधी ने लार्ड इरविन को पत्र लिखा ‘ मैंने रोटी मांगी थी मुझे पत्थर मिला, इंतजार की घड़ियां समाप्त हुई ।

12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने अहमदाबाद में स्थिति साबरमती आश्रम से अपने 78 आश्रमवासियों के साथ दांडी यात्रा प्रारंभ की । दांडी ग्राम ( गुजरात के नौसरी जिले में स्थित ) पहुंचकर महात्मा गांधी ने 6 अप्रैल, 1930 को समुद्र तट पर सांकेतिक रूप से नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा इसे ‘नमक सत्याग्रह’ भी कहा जाता है । दक्षिण में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व में सी. राजगोपालाचारी ने किया ।

इसी नमक सत्याग्रह की घटना के बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई । इस आंदोलन में महिलाओं ने बढ़ – हिस्सा लिया । नमक सत्याग्रह के दौरान धरसाना मैं महिलाओं का नेतृत्व ‘सरोजनी नायडू’ के द्वारा किया गया । धरसाना धरने के दौरान अंग्रेजी सैनिकों द्वारा लाठी चार्ज किया गया था , जिसका मार्मिक विवरण अमेरिकी समाचार पत्र फ्रीमैन के संपादक मिलर ने अपने पत्र में किया है ।

ध्यान रहे –

18 अप्रैल, 1930 में सूर्यसेन के नेतृत्व में चिटगांव ( तत्कालीन ) बंगाल शस्त्रागार पर धावा बोला गया था, तो वही सूर्यसेन के साथ प्रतिलता बाडेदर एवं कल्पना दत्ता जैसी क्रांतिकारी महिलाएं भी थी । अगस्त 1930 ई. में रुद्रीनवागांव मैं जंगल सत्याग्रह हुआ ।

उत्तर -पश्चिम सीमांत क्षेत्र में ‘सीमांत गांधी’ के नाम से प्रसिद्ध खान अब्दुल गफ्फार खां के नेतृत्व में पठानों ने ‘खुदाई खिदमतगार’ नामक संगठन का गठन कर सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया । इसे लाल कुर्ती आंदोलन भी कहते हैं । सरकार ने दमनकारी कार्यवाही करते हुए कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया ।

प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930-1931-

12 नवंबर , 1930 से 13 जनवरी, 1931 तक लंदन में ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मैकडोनाल्ड की अध्यक्षता में आयोजित किया गया । सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले प्रमुख भारतीय नेताओं में तेज बहादुर सप्रु , श्रीनिवास शास्त्री, बीकानेर के गंगाराम सिंह , अलवर के महाराजा जयसिंह, मोहम्मद अली, मोहम्मद श, आगा खां इत्यादि थे । यह पहली ऐसी वार्ता थी जिसमें ब्रिटिश शासकों द्वारा भारतीयों को बराबरी का दर्जा दिया गया । कांग्रेस ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया ।

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गांधी इरविन समझौता 1931-

5 मार्च 1931 को गांधी व व्यवसाय इरविन के मध्य हुई वार्ता के बाद गांधी जी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस एवं द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार कर लिया गया था

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 1931

7 सितंबर 1931 से 1 दिसंबर 1931 तक लंदन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें कांग्रेश की ओर से महात्मा गांधी व भारतीय महिलाओं के प्रतिनिधि के रूप में सरोजिनी नायडू ने भाग लिया इस सम्मेलन का आयोजन लंदन के सेट पैलेस में किया गया इसी समय चर्चितन ने महात्मा गांधी को अरे अर्द्ध_नग्न फकीर कहा इसी सम्मेलन में सर आगा खान द्वारा मुस्लिम लीग के लिए संप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को स्थाई बनाने और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर द्वारा दलित वर्ग के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की मांग की गई अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण मुद्दे पर मोहम्मद अली जिन्ना एवं अन्य सांप्रदायिक दलों के प्रतिनिधियों की हठधर्मिता से सम्मेलन असफल हो गया!

जनवरी 1932 में कांग्रेश के द्वारा महात्मा गांधी के देश को इस आहराना
के साथ ,देश अगेन परीक्षा के लिए तैयार रहें, सविनय अवज्ञा आंदोलन पुनः प्रारंभ कर दिया गया वायसराय लार्ड वेलिंगटन के द्वारा सत्याग्रही यो पर और आ एवं दमनात्मक कार्यवाही की गई , मई 1934 तक आंदोलन वापस ले लिया गया, परंतु इस आंदोलन के माध्यम से कांग्रेश बड़े पैमाने पर देशवासियों को स्वतंत्रता की आंदोलन में सम्मिलित करने में सफल रही

रानी गिंडल्यू भारत की प्रसिद्ध महिला क्रांतिकारियों में से एक थी जिन्हें नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई कहा जाता है तथा इसको सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान 17 अप्रैल, 1932 को गिरफ्तार कर दिया गया वह 14 वर्ष की सजा दी गई! नागा महिला रानी गींडअल्यू को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रानी की उपाधि दी व कहा 1 दिन ऐसा आएगा जब भारत एने स्नेहपूर्ण स्मरण करेगा!

सांप्रदायिक पंचाट_भारतीय समाज की एकता तोड़ने एवं निर्वाचन पद्धति में अन्य भारतीय जातियों को आरक्षण देने के सिलसिले में 16 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मैकडोनाल्ड ने कम्युनल अवार्ड जारी कर पंचाटमैं पृथक निर्वाचन पद्धति ना केवल मुसलमान अपितु दलित वर्ग पर भी लागू कर दिया इसके विरोध में गांधी जी ने यरवदा जेल में ही 20 सितंबर 1932 को आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया मदन मोहन मालवीय डॉ राजेंद्र प्रसाद और श्री . राजगोपाल चारी के प्रयत्नों से 5 दिन बाद 26 सितंबर, 1932 ईस्वी को महात्मा गांधी व डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के मध्य ‘ पूना पैक्ट’ हुआ जिसके द्वारा सांप्रदायिक घोषणा को अस्वीकार कर दिया गया तथा हिंदुओं को आवंटित सीटों में से दलितों के लिए 148 सीटें आरक्षित कर दी । यही पूना पैक्ट स्वतंत्र भारत में आरक्षण का आधार बना ।

तृतीय गोलमेज सम्मेलन 1932-

17 नवंबर 1932 से 24 दिसंबर 1932 तक तृतीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया इसमें केवल राज भक्तों और संप्रदायिकता वादियों ने ही भाग लिया कांग्रेश ने इस सम्मेलन में अपनी ओर से कोई प्रतिनिधि नहीं भेजा

तीनो गोलमेज सम्मेलनों के आधार पर ब्रिटिश सरकार ने मार्च 1933 में एक ‘ श्वेत पत्र ‘ किया जिसके आधार पर भारत सरकार अधिनियम 1935 पारित किया गया ।

ध्यान रहे-

गोलमेज सम्मेलन के तीन दौरा लंदन में आयोजित हुए थे । 1933 ई. में परतंत्र भारत की अंतिम भारतीय कांग्रेसी महिला अध्यक्षता श्रीमती नलिनी सेन गुप्ता थी, तो वही 1933 ई. मैं बीनादास ने दीक्षांत समारोह में upadhi ग्रहण करते समय governor पर गोली चलाई थी ।

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धन्यबाद  

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