maratha shakti 1680 se 1740 tak history : मराठा शक्ति 1680 से 1740 तक इतिहास –
maratha shakti 1680 se 1740 tak history सन 1680 से 1740 ई. तक मराठा शक्ति के उत्थान का क्रमिक इतिहास – सन 1680 में शिवाजी की मृत्यु हो गई शिवाजी के 2 पुत्र थे संभाजी और राजाराम शिवाजी की मृत्यु के बाद संभाजी शासक बना यद्यपि संभाजी धीर वीर तथा साहसी था लेकिन दुर्वेयसनी था इसी कारण उसने अपने भाई राजाराम को बंदी गृह में डाल दीया लेकिन अपने पिता की तरह वह मुगलों से संघर्ष करता रहा उसने औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर को शरण दी परंतु अकबर और संभाजी का मिलन दोनों में से किसी के लिए भी लाभदायक सिद्ध नहीं हुआ क्योंकि संभाजी को अकबर पर पूरा विश्वास नहीं था अतः वह अकबर की अधिक सहायता नहीं कर सका अंत में निराश होकर हुए फरवरी 1687 में ईरान की ओर चला गया जहां 1704 ईस्वी में उसकी मृत्यु हो गई ( maratha shakti 1680 se 1740 tak history )
संभाजी का मुगलों से संघर्ष–
संभाजी ने मुगलों के विरुद्ध संघर्ष की नीति जारी रखें और औरंगजेब भी संभाजी को नष्ट करने पर तुला हुआ था 1681 से 1684 तक मुगल अभियानो को पर्याप्त सफलता मिली बीजापुर तथा गोलकुंडा में मुगलों की शक्ति में अत्यधिक वृद्धि हो गई और अब मुगल मराठों पर अपनी पूरी शक्ति लगातार आक्रमण करने लगे
1689 ईस्वी में जब संभाजी संगमेश्वर नामक स्थान पर आमोद प्रमोद में डूबा हुआ था मुगलों ने अचानक मराठों पर आक्रमण कर दिया और फरवरी 1689 में संभाजी को गिरफ्तार कर लिया गया औरंगजेब ने संभाजी को 15 दिनों तक कठोर यातनाएं और अंत में 21 मार्च 1689 को उसका वध कर दिया गया
राजाराम–( Rajaram)
संभाजी की मृत्यु के बाद फरवरी 1689 में शिवाजी के दूसरे पुत्र राजाराम को महाराष्ट्र का छत्रपति घोषित किया गया यद्यपि राजाराम में सैनिक तथा प्रशासनिक योग्यता का अभाव था तथा अपने योग्य सेनानायक हो तथा सलाहकारों प्रशासकों की सहायता से उसने औरंगजेब से फलता पूर्वक टक्कर ली
राजाराम का मुगलों से संघर्ष–
राजाराम के चत्रपति बनने के बाद औरंगजेब ने एक विशाल सेना रायगढ़ पर आक्रमण के लिए भेजी राजाराम 5 अप्रैल 1689 को रायगढ़ से निकलकर प्रतापगढ़ पहुंच गया मुगल सेना शीघ्र प्रतापगढ़ पहुंच गई लेकिन राजाराम यहां से निकलकर पहाला के दुर्ग में पहुंच गया मुगलों ने पहांला पर आक्रमण किया लेकिन उन्हें पराजय मिली
रायगढ़ का पतन–
रायगढ़ के दुर्ग की मराठों ने यद्यपि वीरता पूर्वक रक्षा की परंतु 8 मांस के घेरे के पश्चात रायगढ़ के दुर्ग पर मुगलों का अधिकार हो गया साहू को बंदी बना लिया गया रायगढ़ के पतन के समाचार से राजाराम नृत्य साहित्य नहीं हुआ वह पहा ला कि दुर्ग से निकलकर जिंजी चला गया
जिन जी का संघर्ष–
औरंगजेब ने जुल्फीकार खान के नेतृत्व में एक शक्तिशाली सेना जिंजी भेजी जिसने जिन जी के दुर्ग को घेर लिया यह गेरा 8 वर्ष तक चलता रहा इस अवधि में मराठों ने मोरों पर आक्रमण किए और उन्हें पर्याप्त क्षति पहुंचाई 1692 ईस्वी में संताजी घोरपड़े ने मुगल सेनापति अली मर्दान खान पराजित किया और उसे बंदी बनाकर जिंजी भेज दिया इसी प्रकार संता जी ने मुगल सेनापति खानजाद खान को कासिम खां को गे लिया अंत में भारी धन राशि चुकाने पर इन्हें मुक्ति म
दिसंबर 1697 में राजाराम को मुगल आक्रमण के कारण जिन जी का दुर्ग छोड़ना पड़ा और वह वेल्लोर होता हुआ महाराष्ट्र पहुंच गया
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सातारा को राजधानी बनाना–
सन 1698 इसवी में राजाराम ने सातारा को अपनी नई राजधानी घोषित किया उसने महाराष्ट्र का दौरा किया और मराठों में नवीन उत्साह का संचार किया 12 मार्च 1700 ईस्वी को सिंह गढ़ मैं उसकी मृत्यु हो गई
ताराबाई–(Tarabai)
1700 ईस्वी में राजा राम की मृत्यु के पश्चात उसकी विधवा पत्नी ताराबाई मराठा राज्य की वास्तविक अध्यक्षता हुई और उसने मराठों को संगठित रखा वह अपने 4 वर्ष के पुत्र शिवाजी द्वितीय का राज्य अभिषेक कर स्वयं उसकी संरक्षिका बन गई
ताराबाई का मुगलों से संघर्ष-
ताराबाई ने पहांला को अपना मुख्यालय बनाया और मुगलों के विरुद्ध सैनिक अभियान का यहां से संचालन किया सत
1700 ईस्वी में हनुमंत राव ने मुगलों से कटा कटावकर जीत लिया और रानो जी घोरपडे ने बीजापुर जिले में बाघेवाडी और इनदी के प्रदेश पर अधिकार कर लिया
औरंगजेब ने 1701 ईसवी में पहाला पर आक्रमण कर दिया और 28 मई 1701 को पहाला के दुर्ग पर अधिकार कर लिया इसके बाद 1703 ईस्वी में उसने विशालगढ़ तथा सिंह गढ़ को जीत लिया और 1704 ईस्वी में रायगढ़ एवं तोरण के दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया लेकिन मराठों का संघर्ष अब भी जारी रहा और 1704 ईसवी में उन्होंने सतारा पर पुन अधिकार कर लिया तथा अन्य अनेक किले भी अपने अधिकार में ले लिए इस प्रकार अब औरंगजेब निरंतर असफल होने लगा !
औरंगजेब ने निरंतर असफलताओं से निराश होकर मराठा नेताओं से संधि की बात चलाई, लेकिन इसमें उसे सफलता नहीं मिली !1706 ईस्वी में मराठों ने मुगलों पर निरंतर आक्रमण जारी रखें और मुगलों की संपत्ति को लूटा.
छत्रपति शाहू-
साहू संभाजी और येशुबाई का पुत्र था .
उसे लगभग 17.1/2 वर्ष मुगलों की कैद में व्यतीत करने पढ़े 1707 मैं औरंगजेब की मृत्यु के बाद सम्राट आजमांशाह ने निम्नलिखित शर्तों पर साहू को मुगलों की कैद से मुक्त कर लिया–
1. साहू मुगल सम्राट के अधीन रहकर अपने पितामह के छोटे से राज्य पर शासन करेगा
2. वह मुगल सम्राट की आज्ञा अनुसार अपनी सेना सहित उसकी सेवा करेगा
3. वह अपनी माता येसूबाई तथा अपनी पत्नी को बंधक के रूप में मुगलों के पास रखेगा
4. साहू को दक्षिण के 6 प्रांतों से चौथ कथा सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार प्रदान कर दिया गया
ताराबाई और साहू के बीच संघर्ष-
18 मई 1707 को साहू महाराष्ट्र के लिए रवाना हुआ महाराष्ट्र पहुंचकर उसे ताराबाई के विरोध का सामना करना पड़ा उसने महाराष्ट्र की गद्दी पर साहू के अधिकार को मान्यता नहीं दी और अपने पुत्र शिवाजी द्वितीय को इसका वास्तविक स्वामी बतलाया परिणाम स्वरूप नवंबर 1707 में खेड़ में ताराबाई और साहू की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ और सेनापति धन्ना जी जादव द्वारा साहू का पक्ष लेने से साहू विजय हुआ 1 दिसंबर 17 से 7 को सतारा के दुर्ग पर भी साहू का अधिकार हो गया और 22 जनवरी 1708 को साहू का धूम धाम से राज्य अभिषेक हुआ यद्यपि
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इस लेख को अंत तक पढने के लिए आपका बहुत – बहुत धन्यबाद