Events between 1857 and 1947 : 1857 से 1947 के मध्य की घटनाएँ ?

Events between 1857 and 1947 : 1857 से 1947 के मध्य की घटनाएँ ?

Events between 1857 and 1947

आन प्रथा
आन शब्द का शाब्दिक अर्थ महाराणा की सौगंध होता है । मेवाड़ के व्यापारी आपसी लेनदेन में इस प्रकार का प्रयोग किया करते थे तथा महाराणा ने भी इस प्रथा को कानूनी मान्यता दे रखी थी लेकिन 1863 ई. में इस प्रथा को व्यवहारिक ना मानते हुए पुलिस अधिकारी निजामुद्दीन ने गैरकानूनी घोषित कर दिया इस प्रथा की बहाली के समर्थन में 1864 ई. में नगर व्यापारी चंपालाल के नेतृत्व में मेवाड़ के इतिहास में पहली बार आम हड़ताल का आयोजन किया गया ।

अजमेर दरबार ( 1870 ई. )

इस समय गवर्नर जनरल लॉर्ड मेयो था । 22 अक्टूबर 1870 को लगे इस दरबार में लॉर्ड मेयो ने देसी शासकों, सामंतों एवं अंग्रेजों के मध्य सांस्कृतिक खाई को बांटने के उद्देश्य में से मेयो कॉलेज खोलने की घोषणा की, जो कि 1875 ई. जाकर स्थापित किया गया । लॉर्ड मेयो ने कोटा महाराव को 1857 के विद्रोह में उनकी भूमिका को संदिग्ध मानते हुए उन्हें अजमेर दरबार में नहीं बुलाया इसलिए कोटा राज्य के शासक ने अजमेर में लॉर्ड मेयो द्वारा आयोजित दरबार में भाग नहीं लिया था । जब के जोधपुर के महाराजा तख्त सिंह दरबार में शामिल होने अजमेर आए लेकिन किसी कारण से दरबार में शामिल हुए बिना लौट गए ।

कलकत्ता दरबार ( दिसंबर 1875 ई. )

प्रिंस अल्बर्ट के स्वागत के लिए दिसंबर, 1875 में कोलकाता दरबार का आयोजन किया गया तथा यहां से 1876 में प्रिंस अल्बर्ट जयपुर की यात्रा पर आये । इनके आगमन को चीर स्थाई बनाने के उद्देश्य से अजमेर के राजा सवाई रामसिंह द्वितीय ने अल्बर्ट हॉल की नीव डलवाई ।

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दिल्ली दरबार ( 1877 )

1876 ई. मैं महारानी विक्टोरिया ने भारत की
साम्राज्य केसर–ए– हिंद की उपाधि धारण की तथा इस उपाधि की घोषणा के लिए 1870 ई. मैं लार्ड लिटन ने दिल्ली दरबार का आयोजन किया! इस समय भारत अकाल ग्रस्त था इस कारण देसी समाचार पत्रों में लिटन की तुलना रोम के शासक नीरो से की गई तथा इसी दरबार में जयपुर के महाराजा सवाई राम सिंह द्वितीय को साम्राज्य का सलाहकार नियुक्त किया गया।

दिल्ली दरबार ( 1911)

1911 ईस्वी में दिल्ली दरबार का आयोजन सम्राट जॉर्ज पंचम तथा महारानी मेरी के स्वागत के लिए किया गया, इसी अवसर पर महारानी मेरी ने पुष्कर झील (अजमेर) में जनाना घाट का निर्माण करवाया जो वर्तमान मैं गांधी घाट के नाम से जाना जाता है।

महाराजा गंगा सिंह ( बीकानेर )

प्रथम विश्व युद्ध (1914 – 1918) मैं महाराजा गंगा सिंह दो बटालियन–गंगा रिसाला(ऊंट की पलटन) तथा शार्दुल लाइट इन फैक्ट्री को साथ लेकर अंग्रेजों कि मदद लिए गए! विश्वयुद्ध के पश्चात हुए पेरिस शांति सम्मेलन 1919 में तथा राष्ट्र संघ के अधिवेशन मैं भी गंगा सिंह ने भाग लिया! महाराजा गंगा सिंह ने अलवर के महाराजा जयसिंह तथा धौलपुर के महाराजा उदय भान सिंह के साथ प्रथम गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया तथा 1931 में जब यह द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए, तब चंदन मल बेहड़ तथा स्वामी गोपाल दास ने अपने साथियों के साथ गंगा सिंह एवं उसके राज्य की बुराई के परचय बीकानेर के प्रतिनिधियों में बटवा दिए जिससे गंगा सिंह को वहां अपमानित होना पड़ा महाराजा गंगा सिंह ने बीकानेर लौटकर चंदनमल बेहड, स्वामी गोपाल दास तथा उनके साथियों पर बीकानेर पढ़यंत्र केस चलाया जिसमें अभियुक्तों की पैरवी रघुवर दयाल गोयल व मुक्ता प्रसाद के द्वारा की गई।

नरेंद्र मंडल (चैम्बर ऑफ प्रिसेज)

नरेंद्र मंडल का गठन 1921 में किया गया जिसका उद्घाटन दिल्ली के लाल किले पर द यूज़ ऑफ कनाट ने किया संस्था पूर्णत सलाहकारी निकाय था जिसमें सदस्यों की कुल संख्या 121 थी। इसकी बैठक बरस में एक बार वायसराय की अध्यक्षता में होती थी तथा वायसराय की अनुपस्थिति में चांसलर द्वारा होती थी। इस मंडल का प्रथम चांसलर गंगा सिंह ( बीकानेर) को 1921 ई. से 1925 ईस्वी तक बनाया गया अलवर के महाराजा जयसिंह ने इसे नरेंद्र मंडल नाम दिया!

बटलर कमेटी ( देसी राज्य संबंधी समिति)

इस कमेटी का गठन 1927 में किया गया इसमें एक अध्यक्ष सर हरकोर्ट बटलर तथा 2 सदस्य शिर्डने पील व डब्ल्यू. एस होल्डसबर्थ बनाई गये। इस समिति के समछह देसी रियासतों का बेसरली स्कॉट ने रखा ।

ध्यान रहे –

राजस्थान के राजपूत राजाओं का एक प्रसंग बना दीया जाए यह सुझाव चार्ल्स मेटकॉफ ने दिया तो कैप्टन बाल्टर ने राजस्थान के राज्य सी शासक वर्ग के लिए पृथक शिक्षा संस्थान को आवश्यकता पर बल दिया था तथा राजपूतों में समाज सुधार हेतु 1988–89 ई. में राजपूत हितकारिणी सभा का गठन किया गया ।

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Events between 1857 and 1947

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