स्वामी विवेकानन्द और रामकृष्ण मिशन
रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी, 1836 ई. को बंगाल में कमरपुकुर में हुआ । इनके पिता खुदीराम वह माता चंद्रा देवी थी तथा इनका असली नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था । 1852 ई. में वे कोलकत्ता आये व कोलकत्ता के नजदीकी दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के पुजारी बन गए ।
उसके बाद उन्होंने 12 वर्ष तक कठोर तपस्या की और फिर वे वृंदावन, बनारस, प्रयाग आदि स्थानों पर गए । 16 अगस्त 1886 को उन्होंने शरीर त्याग दिया। रामकृष्ण मठ की स्थापना उन्होंने ही की थी , तो वही उनके प्रिय शिष्य नरेंद्रनाथ दत्त थे तथा उन्होंने अपनी समस्त ईश्वरी शक्ति नरेंद्र नाथ ( स्वामी विवेकानंद ) को दे दी । वर्तमान भारत के रचियता स्वामी विवेकानंद है । इनका जन्म 1863 ई. मैं कलकत्ता बंगाल में हुआ था । स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम ‘नरेंद्र नाथ दत्त’ था । उनके माता-पिता उन्हें bile कहते थे तथा इनके पिता विश्वनाथ दत्त एक मशहूर वकील थे व इनकी माता का नाम भुनेश्वरी देवी था ।
नवंबर, 1881 ई. मैं इनकी वेट स्वामी रामकृष्ण परमहंस से हुई और वे उनके शिष्य बन गये तथा उन्होंने 1886 ई. मैं बारानगर ( पश्चिमी बंगाल ) मैं बारानगर मठ की स्थापना की । अपने गुरु के उपदेश, वेदांत दर्शन और हिंदू धर्म की विशेषताओं का प्रचार-प्रसार करने के लिए उन्होंने समस्त भारत की यात्रायें की । वे दिसंबर, 1892 मैं कन्याकुमारी पहुंचे, जहां उन्होंने 3 दिन तक गहन साधना की व ज्ञान प्राप्त किया ।
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वहां सन 1970 मैं विवेकानंद रॉक स्मारक बनाया गया है । सर्वधर्म सम्मेलन में जाने से पूर्व महाराजा खेतड़ी ‘अजीत सिंह’ ने नरेंद्रनाथ दत्त को ‘स्वामी विवेकानंद’ नाम दिया । खेतड़ी को एक्सेंट बंदरों की नगरी कहा जाता है , तो वही मैनाबाई खेतड़ी की प्रसिद्ध नर्तकी थी , जिसने विवेकानंद को प्रभु मोरे अवगुण चित्त ना धरो भजन सुनाया तथा इनको स्वामी विवेकानंद ने ज्ञानदायिनी मां का संबोधन दिया ।
11 सितंबर 1893 ई. मैं शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में उन्होंने हिंदू धर्म और भारत के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया । इस सम्मेलन में उपस्थित विभिन्न धर्मों के आचार्य और श्रोता विवेकानंद से प्रभावित हुए । स्वामी जी के भाषणों की प्रशंसा में अमेरिका के समाचार पत्र द न्यूयॉर्क हेराल्ड ने लिखा – सर्वधर्म सम्मेलन में सबसे महान व्यक्ति विवेकानंद है –
उनका भाषण सुनकर ऐसा लगता है कि धर्म मार्ग में इस प्रकार से समुन्नत राष्ट्र ( भारतवर्ष ) मैं हमारे धर्म प्रचारकों को भेजना कितना मूर्खतापूर्ण है । तथा न्यूयॉर्क क्रिटिक ने लिखा – ‘ वे ईश्वरीय शक्ति प्राप्त वक्ता हैं । उनके सत्य वचनों की तुलना में उनका बुद्धिमतापूर्ण चेष्टा पीले और नारंगी वस्त्रों से लिपटा हुआ कम आकर्षित नहीं है ।’
स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका व इंग्लैंड का भ्रमण किया और हिंदू धर्म व संस्कृति का प्रचार किया । 1896 ई . मैं न्यूयॉर्क में वेदांत सोसायटी की स्थापना की । 1896 ई . मैं स्वामी रामकृष्ण की मृत्यु के बाद श्री रामकृष्ण और हिंदू धर्म के सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए स्वामी विवेकानंद ने 5 मई, 1897 ई. मैं कोलकत्ता के समीप ‘ बेलूर’ मैं ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की 11 मई, 1897 ई. को कोलकत्ता में रामकृष्ण मिशन एसोसिएशन की स्थापना की । 9 दिसंबर, 1898 को उन्होंने पश्चिमी बंगाल मैं बेलूर मठ की स्थापना की । 19 मार्च, 1899 को उन्होंने मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना की ।
लॉस एंजिलस , सेंट प्रांशु फ्रांसिस्को में ‘ वेदांत ‘ केंद्र खोले । स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म और संस्कृति को न केवल भारत में वरन् समस्त विश्व में प्रतिष्ठित किया । इसी कारण सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें ‘ सांस्कृतिक चेतना का जनक ‘ कहा । विवेकानंद अधिक दिनों तक सेवा कार्य नहीं कर सके और 1903 में 39 वर्ष की अल्पायु में इनका देहांत हो गया ।
स्वामी विवेकानंद को वीर सन्यासी कहा जाता था, तो वहीं अमेरिका में विवेकानंद को तूफानी हिंदू कहा गया था । उनकी प्रमुख रचनाएं कर्मयोग, भक्ति योग, ज्ञान योग , हिंदू धर्म, प्राच्य और पाश्चात्य शिक्षा , हमारा भारत, धर्म रहस्य , शक्तिशाली विचार आदि है । उनका समस्त साहित्य दस खंडों में प्रकाशित किया गया तथा उन्होंने प्रबुद्ध भारत का संपादन अंग्रेजी में व प्रबोधिनी का संपादन बंगाली में किया, तो वही उनका दर्शन वेदांत दर्शन था।
सुभाष चंद्र बोस ने कहा था – जहां तक बंगाल का संबंध है। हम विवेकानंद को आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन का आध्यात्मिक पिता कह सकते हैं । उनके जन्म दिवस 12 जनवरी को सन 1985 से प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है, तो वही बेलूर मठ दो जुड़वा संस्थाओं रामकृष्ण मठ व रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय है जो पश्चिम बंगाल में हावड़ा जिले में हुगली नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित है, जहां श्री रामकृष्ण, श्रद्धेय मां श्री शारदा देवी व स्वामी विवेकानंद का मंदिर है । स्वामी विवेकानंद का प्रसिद्ध कथन है – उठो , जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त ना हो जाए ।
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स्वामी विवेकानन्द और रामकृष्ण मिशन
धन्यबाद