शेरशाह सूरी का जीवन परिचय ( 1472 – 1545 ई . )

शेरशाह सूरी का जीवन परिचय

डॉ. के. आर. कानूनगो के अनुसार हरियाणा प्रांत के नारनौल स्थान पर इब्राहिम के पुत्र असम के घर वर्ष 1486 में शेरशाह का जन्म हुआ था । परमात्मा शरण का विचार है, कि शेरशाह का जन्म वर्ष 1472 में हुआ था । शेरशाह सूरी को सूरी साम्राज्य का संस्थापक कहा जाता है । शेरशाह सूरी के पिता हसन खां सासाराम ( बिहार ) के जमींदार थे ।

शेरशाह सूरी का जीवन परिचय

शेरशाह सूरी के बचपन का नाम ‘फरीद खां’ था । कहा जाता है कि फरीद ने एक शेर को तलवार के एक ही बार से मार दिया था । इसकी एक बहादुरी से प्रसन्न होकर अफगान सुल्तान ‘मोहम्मद बहार खां लोहानी’ ने शेर खान की उपाधि दी ।

बिलग्राम या कन्नौज का युद्ध जो 17 मई, 1540 ई. को हिमायूं व शेरशाह के बीच हुआ था इस विजय के बाद शेरशाह सूरी भारत का शासक बना । 1 रुपए का सिक्का भारत में पहली बार शेरशाह सूरी के शासनकाल में ढाला गया था । शेरशाह की महानता उसके प्रशासनिक सुधारों में है ।

शेरशाह के विजयी अभियान
राज्य। वर्ष। शासक।

मालवा। 1542। मल्लूखां

रायसीन। 1543। पूरणमल

मारवाड़। 1544। मालदेव

कालिंजर। 1545। कीरत सिंह

मालवा विजय के बाद शेरशाह सूरी ने 1543. ई. में रायसीन के दुर्ग पर आक्रमण किया, वहां का हिंदू शासक पूरणमल था । दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया गया। शेरशाह को विजय की किसी प्रकार की आशा ना होने के बाद समझौता करने के लिए उसने पूरणमल के पास प्रस्ताव भेजा । हालांकि यह शेरशाह की एक चाल थी, इस समझौते के तहत शेरशाह ने हिंदू रानियां एवं धार्मिक स्थलों को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने बिना दुर्ग को अपने अधिकार में करने एवं पूरणमल को अपने अधीन रहने को कहा ।

जब शिविर में दोनों में समझौता हो रहा था, तब उसी समय मुस्लिम महिलाओं ने पूरणमल के अत्याचारों के बारे में शेरशाह से कहा और साथ ही विनती की कि इस काफिर राजा को सजा दी जाए और इसी को लेकर पूरणमल के साथ विश्वासघात करते हुए शेरशाह ने राजपरिवार के सदस्यों का कत्लेआम करने का आदेश दिया । यह शेरशाह सूरी के राजनीतिक जीवन में एक धब्बा साबित हुआ ।

रायसीन को जीतने के बाद शेरशाह सूरी ने राजस्थान के सुदृढ शासक मालदेव की ओर ध्यान दिया , क्योंकि मालदेव उस समय राजपूत शासकों का नेतृत्व प्रदान कर रहा था और अपनी शक्ति को बढ़ा रहा था । शेरशाह को डर था कि वह एक दिन दिल्ली के सिंहासन से अपदस्थ करने का साहस करेगा ,

इसी सिलसिले में 1544 में शेरशाह ने मारवाड़ पर आक्रमण करने के लिए प्रस्थान किया और गिरी -सुमेल नामक स्थान पर अपनी सेना का जमावड़ा करता है लेकिन मालदेव की विशाल सेना को देखकर उसके सैनिक घबरा जाते हैं तब शेरशाह ने एक चाल चली और मालदेव के सेनानायकों को अलग करने के लिए जाली पत्र डलवाए ।

इस अविश्वास के कारण मालदेव रात को युद्ध के मैदान से प्रस्थान कर जाता है परंतु उसके सेनानायक युद्ध करते हैं और शेर शेरशाह से कड़ा संघर्ष करते हुए अपना बलिदान दे देते हैं । उनकी वीरता को देखने के बाद शेरशाह के मुंह से बरबस ही यह निकल जाता है कि ‘एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं अपनी बात बादशाहत खो देता ।’

ध्यान रहे – मारवाड़ का राठौर वांशीय शासक राव मालदेव ( 1531- 1562 ई. ) जिसे हिंदुस्तान का हशमत वाला शासक कहा जाता है, ने अकबर से पूर्व अपनी पुत्री कनका बाई का विवाह सूर शासक इस्लाम शाह सूर से करवा कर मुस्लिम शासकों से वैवाहिक संबंध स्थापित करने की परंपरा डाली । शेरशाह सूरी का जीवन परिचय

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